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‘सम्मान’ -अस्मि गर्ग, 7C



जीने को जब चाहिए,

रोटी, कपड़ा और मकान। 

फिर लोभ, मोह के फंदे में,

क्यों फँसता इंसान?


मन में रख बस प्रेम,

वाणी में रस की खान।

हो राष्ट्र पर अभिमान,

और रख सच्चा ईमान॥


अवश्य करो तुम सबका मान,

विस्मृत न हो आत्म सम्मान। 

अपने सत्कर्मों से मानव,

कर ले अपना भी नाम॥


जब तक प्रभु ने माना  

तुमको धरा का मेहमान। 

न गलत करो, न करने दो,

मन में लो यह ठान॥


मर कर भी न मर सको,

इतना हो तेरा सम्मान। 

जग में हो जाए अमर 

तेरी आन-बान और शान॥


-अस्मि गर्ग, 7C


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